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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

इंसान के रंग

इंसान के रंग

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गिरगिट से ज्यादा इंसान रंग बदलते है

गिरगिट से ज्यादा इंसान आंखे मलते है


लोगो की फितरत का पता न चलता है

इंद्रधनुष से ज्यादा लोग रंग बदलते है


आज लोग पल-पल में बात बदलते है

जैसे कोई दरिया की लहरों में चलते है


गिरगिट से ज्यादा इंसान रंग बदलते है

धन से ज्यादा अपनी बातों से छलते है


आज इंसानो को देखकर कौआ शरमाए,

कौए से ज्यादा काला दिल इंसान रखते है


आज उजाले को देखकर उजाले डरते है

अंधेरे ने जो इतने अधिक रूप बदलते है


गिरगिट से ज्यादा इंसान रंग बदलते है

वो बेचारे नाम के रहे रंग बदलते तने है


आज झूठ के भी हुए रुप इतने उजले है

लोगों को पता ही नही पाप बोझ तले है


गिरगिट की अब मिसाल देना तुम छोड़ो,

इंसान जो इतने रंग बदलनेवाले बने है।


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