भीड़ में
भीड़ में
गुम हो गए हैं सब यहां
इस शहर की भीड़ में,
सुबह से शाम तक
जहां बस भागम भाग है,
एक अनजानी दौड़ है
जिसमे सब भागते हैं
जिंदगी पाने के लिए,
भीड़ से हटकर
खुद की पहचान बनाने के लिए,
पर सब उखड़े हैं
सब रूठे हैं खुद से
थक कर चूर है इस भीड़ में,
खो गए हैं वो यहां
सब कुछ खोकर अपना
शहर के अहसानों को सीने में दबाए,
घुटते मरते रोज
दर्द को साथ लिए
जिंदगी की जंग में
वजूद अपना दांव पर लगाए,
वो जानते हैं इस अंधी दौड़ में
वो रुके तो सब छूट जाएगा
भीड़ में भीड़ हो जाएगा,
इसलिए वो भागता है
सुधबुध अपना चैन खोकर
सिर्फ एक अदब ख़ुशी के लिए,
पर सांस लेने की फुर्सत कहां
यहां सिर्फ शहर भागता है,
ना कोई उसका यहां
ना है कोई पराया,
सभी तो बेचारे हैं
अपनी किस्मत के मारे हैं,
सब गुमशुदा हैं इस शहर में
एक जिंदगी की तलाश में,
खोजते हैं वो यहां
एक अधूरा ख़्वाब अपना
जिसे पाने वो भीड़ हो गए हैं।