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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Tragedy

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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Tragedy

मुक्तिपथ

मुक्तिपथ

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थक गया है

मन, मस्तिष्क।

चूक सा गया है,

भाव परिष्कृत।

ऊब गयी है

समय की कहानियां।

लौटा दी गई है

भूत की परछाइयां।

बुझ रही है

शरीर आभा।

मिट रही है

आशा प्रभा।

कट रहा है

जीवन बोझ जैसा

सूखता मन

टूटे पेड़ जैसा।


फैल रहा है

धूम्र संशय खल

छीनता-बटोरता

लेता हुआ पल।


असह्य हुआ,

अब दैव समर्पण,

रण न प्रण,

अब मुक्त हो क्षण।



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