दिवा स्वप्न
दिवा स्वप्न
खिले खिले , मुस्कुराते गजरे मोगरे के-
थका- थका ,मुरझाया फूल-एक बालक!
आखें मूंद ,देख रहा है सपना , बैठे बैठे!
आएगा कोई,उतरेगा चमचमाती गाड़ी से
ले लेगा गजरे सारे,अपनी प्रेयसी के लिए-
थमा देगा उसके हाथों में ,रुपए दो चार
क्या मालूम उसे कि यह किस्से कहानियां
यह सपने दो जून रोटी के ,दो चार रुपयों के
बनते हैं बस वीडियो के लिए,दिखावे के लिए
लाइक ,शेयर और संवेदनहीन कमेंट के लिए
असलियत ज़िन्दगी की , उसके लिए है इतनी
मुरझाने से पहले कोई खरीद ले इन गजरों को
हो जाए गर इंतज़ाम , आज की रोटी-प्याज़ का
मां की आंखों में खुशी की हल्की सी चमक का
हर दिन है ही,आँख-मिचौली सच और सपनों की
कल की कल सोचेंगे ,अभी तो
आ रहा है सपना रास।
---------
