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Kumar Vikrant

Tragedy

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Kumar Vikrant

Tragedy

बदल जाना

बदल जाना

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पहले जैसा 

न रहने से पहले या 

पहले जैसा 

न होने के लिए 

इंसान को गुजरना पड़ता है 

बेरुखी के एक दरिया से 

जख्मी होना पड़ता है 

उपेक्षा के तीरो से 

बिना गलती के भी 

खुद को गुनाहगार बनाना पड़ता है 

बेअदबी सहते हुए 

विनम्र रहना पड़ता है 

जहाँ खुद की कोई जरूरत न हो 

वहाँ बने रहना पड़ता है 

भीड़ में भी तन्हा होने के 

अहसास से रोज गुजरना पड़ता है 

लेकिन एक दिन आदमी 

पत्थर का बन जाता है 

और पूरी तरह बदल जाता है 

वो छोड़ देता है उस इंसान को भी 

जिसकी वो रोज चिंता करता था 

जिसके दुःख से दुखी होता था 

जिसके लिए वो सब कुछ करता था 

वो बदल तो जाता है 

लेकिन कुछ जख्म 

किसी यादो के जख्म 

किसी की बेरुखी के जख्म 

किसी की बेअदबी के जख्म 

किसी की उपेक्षा के जख्म 

उसके जीवन का हिस्सा 

बन कर रह जाते है 

वक्त जख्मो को भर देगा 

इसी भरोसे वो आगे बढ़ जाता है 

वक्त जख्मो को भर तो देता है 

लेकिन जख्मो के निशान 

वो भी नहीं मिटा पाता 

हाँ इस सबसे गुजरते हुए 

जख्मी इंसान बदल जाता है 

जीवन में आगे बढ़ जाता है।


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