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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

मेरे जख्मों की तुरपाई ना हुई

मेरे जख्मों की तुरपाई ना हुई

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बारहा देखा है कि सूरज के छिपते ही,

गायब हो जाती खुद की जाती परछाई है !


लेकिन भरी दुपहरी ही यह तितली ,

क्यूं छुपकर गुल से मिलने चली आई है !


सबके अपने अपने दर्द अलग हैं ,

और अपने अपने अलग अलग किस्से हैं !


भला ऊपर से देखकर कौन बताए कि ,

दर्द का हुआ बंटवारा कितने इसके हिस्से हैं!


किसकी आँखों में अब उभर आए आँसू ,

उल्फत में कितनों ने चोट जिगर में खाई है।


सच तो यह है कि जो जितना‌ मुस्काता है,

बस समझो उसने उतनी गहरी चोट खाई है !


जो कहा करते थे कि रह लेंगे तेरे बिन,

आज मेरे बगैर कैसे उनकी जां निकल आई है!


ज़ब भी आदतन मेरी नज़र मिली उनसे ,

तब तब उन्होंने इठलाकार ली अंगड़ाई है!


हम तो बस अपनों से ही बचकर रहते हैं ,

कई दफा हमने उनसे चोट बड़ी गहरी खाई है!


यूँ तो अक्सर भर आती हैं हमारी आँखें ,

अपने गहरे जख्मों की हँसकर की तुरपाई है!


हमने जब कभी खुद को तन्हा है पाया,

अपने साये संग रहकर दूर हुई तन्हाई है!



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