क्षणिक उदास
क्षणिक उदास
ए हमारे प्यारे साथी
हम तो तुम से रुठे थे क्षणिक।
ये भी जानते थे हम
कि तुम हीरा हो सुच्चा मणिक।।
बगिया से जब फूल लगे टूटने
तुम्हारे कारण सब हो रहा था।
निष्ठुर हुए तुम बाग के माली
हितैषियों का दिल रो रहा था।।
बाग को संवारो मर्जी से
बाग से सब कर गये किनारा।
हमारा दिल भी खूब रोया
जब तुमने कर दिया बंटवारा ।।
अनाथ हो बंजर में नये बाग को
संवारने में हमसब जुट गये ।
नये को पहुंचा बुलंदी पे
देख पुराने की दशा घुट गये ।।
अचानक तुम दूर चले गये
गिले भी कर ना सके दूर ।।
तुम ने तो बाग संवारा खूब
नये माली में है भारी गरूर ।।
