STORYMIRROR

अर्चना कोहली "अर्चि"

Tragedy

4  

अर्चना कोहली "अर्चि"

Tragedy

लिख रही मैं अंजन से पाती

लिख रही मैं अंजन से पाती

1 min
213

राधा-सा स्मरण में झुलस रहा तन-मन

बैरागिन होकर विचर रहती मैं बन-बन।

द्रवित हृदय से निकलती सदा बरसाती

तभी तो अंजन-मसि से लिखूं मैं पाती।।


तन्हाई से भीगी-भीगी हुई मेरी यामिनी

मृत प्राय: सी आज हो गई तेरी शालिनी।

ओ, पिया अब आकर दो प्रीत-संजीवनी

नहीं तो बन जाऊँ विरह में तेरे तपस्विनी।।


सुहाने दिनों की प्यारी सी पास है धाती

करुणा विगलित मन को वही है भाती।

रिश्ता हमारा अटूट दिया-बाती समान

अहर्निश तुझ पर लगा रहता है ध्यान।।


बिखरे-बिखरे ही रहते सदा ही कुंतल

उतार दिए हैं पिया सुंदर स्वर्ण-कुंडल।

अश्रुओं से फैल रहा मुख पर काजल

रुलाई फूटे देखकर ये काले-से बादल।।


बीते कई ही बरस, कब होगा समागम

टूटता जा रहा है अब दिनोदिन संयम।

द्वार पर बैठी कबसे कर रही इंतजार

अब तो सुन ले तू मेरी करुण पुकार।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy