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अर्चना कोहली "अर्चि"

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अर्चना कोहली "अर्चि"

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संघर्ष भट्ठी पर जलते हैं किसान

संघर्ष भट्ठी पर जलते हैं किसान

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संघर्ष भट्ठी पर प्रतिदिन ही जलते किसान

प्राकृतिक आपदाओं में भी थामे रहें कमान।

दो जून की रोटी खातिर करते निरंतर उद्यम

उनके श्रम-सीकर से उगी है फसल अनुपम।।


मौसम की मार झेल भी छोड़ा नहीं था कर्म

सहकर हरेक दुख भी होता नहीं शीश गर्म।

उसके स्वेद से खिलता अर्थव्यवस्था-बागान

बिना उनके रेत तुल्य बिखरता समृद्धि-यान।।


दिनकर की तीक्ष्ण आँच हो या चले बवंडर

मेहनतकश खेतिहर से वसु बन जाती उर्वर।

पर विडंबना भले सभी की बुभुक्षा है मिटाता

लेकिन पर्याप्त खाद्यान्न नहीं कभी वह पाता।।


फसल रूप में खेत में उपजाता रहता कंचन

फिर भी सुनाई पड़ता लगातार उसका रुदन।

दो वृषभ-हल के सहारे कृषि वह जाए करता

परिश्रम-बल पर सबके गृह अन्न से है भरता।।


किस्मत संग आँख मिचौनी हरदम ही चलती

खुद के लिए मुश्किल ही रोटी जुगाड करती।।

वृष्टि ऊपर ही निर्भर होता है अन्नदाता-जीवन

अच्छी पैदावार से खिलता उसका मन-उपवन।।


आज आढ़तों ने उदर पर किया उनके प्रहार

भूखमरी से हो गए बहुधा कृषक अब लाचार।

दिन-रात मेहनत पर भी मिलती अल्प कीमत

देखो, भारत के पालनहार की कैसी किस्मत।।


जिनके कारण फसलें हमारे देश में लहलहाती

भरे भंडार से हमारी दिल-कली खिलखिलाती।

उस धरा-पुत्र को मिलता नहीं है उचित सम्मान

लाभ उसका उठाकर कुछ लोग करें अपमान।।



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