कृष्ण राधा का प्रेम था विख्यात
कृष्ण राधा का प्रेम था विख्यात
कृष्ण-राधिका प्रेम की, हुई कथा विख्यात।
बिना मिलन की चाह में, बहे प्रीत-बरसात।।
सुध- बुध खोकर राधिका, भागी नंगे पाँव।
बिखरे उसके केश हैं, छूटा पीछे गाँव।।
चित्तचोर की याद में, बैठी वह है राह।
बिन मोहन के राधिका, भरती दिल में आह।।
फागुन के त्योहार में, राधा है नाराज़।
चढ़ता सिर पर सूर्य है, तड़पाते क्यों आज।।
कन्हैया के नेह में, छोड़ी उसने लाज।
करते मिलकर रास हैं, छिपता कैसे राज।।
सौतन-सी है बाँसुरी, राधा करती डाह।
उलाहना दे कृष्ण को, दिल से निकले आह।।
