बदलना है इतिहास
बदलना है इतिहास
नारी के अपमान पर, क्यों सब थे चुपचाप।
चौसर की बाजी नहीं, फिर भी करते पाप।।
देख घोर अपराध को, झुकते सबके भाल।
मानवता का अंत है, फैला विषधर जाल।।
आएँगे क्या कृष्ण अब , खोजे कृष्णा आज।
बनता रक्षक कौन है, लूटी घर की लाज।।
बनती वह ही लक्ष्य है, जलती क्यों हर बार।
बंद सभी ने दृग किए, मिलती उसको हार।।
जनता सारी मौन है, हो उसका व्यापार।
बिकते हैं तन रोज़, बनी खबर अखबार।।
जीवन का जो सार है, उस पर होते घात।
दुर्गा का अवतार है, आई काली रात।।
भरना मन में शक्ति तू , उनका कर संहार।
वसुधा पर जो भार हैं, उसको देना मार।।
उठा शस्त्र को हाथ में, बदले वह इतिहास।
जागे सारे लोग जब, खुशियों का हो वास।।
