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Sadhana Mishra samishra

Inspirational

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Sadhana Mishra samishra

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रे मानव...तूने यह क्या किया

रे मानव...तूने यह क्या किया

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धूल के गुबारों में, 

सितारे छुप गए कहीं,

प्रेमियों की आह को, 

अब मिलते मुकाम नहींI


सूखती लकीरों सी, 

अब नदियाँ हो गईं,

नीर क्षीर धरा,

विलुप्त हो गई कहींI


कटते की आह से,

अवनि बिलख रही,

परिंदों के आशियाने,

दिखते अब कहीं नहींI


प्रकृति का जीवन आल्हाद,

करुण स्वर बन गया,

भोर का मधुर संगीत,

जाने कहाँ खो गयाI


कानन नहीं, आनंद नहीं,

कुएँ नहीं, तड़ाग नहीं,

दरियाओं का मीठा जल,

 अब जहर बन गयाI


बढ़ती धूप, बढ़ती रेत,

भूखे पेट, सिमटते खेत,

कांक्रीट का फैलता समंदर,

अनेक प्रजाति खा गयाI


सूने पनघट, मौन कलरव,

टूटते पर्वत की पीर यहाँ,

पूछती धरती, पूछता है आसमां,

"रे मानव तूने, यह क्या किया...?"


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