"दरख़्त से दरख़ास्त"
"दरख़्त से दरख़ास्त"
हे बूढ़े दरख़्त
वक़्त रहते हो जाओ सख्त
ये आसपास उगती
नई नस्ल की फ़सल
तुम्हारी जड़ एक दिन खोद देगी
साँझा करते हुए तुमसे
तुम्हारी मिटटी, हवा, पानी
तुम्हारी ओर आती हवा तक का
रुख़ मोड़ देगी।
आज है तुम्हारी जड़ पर खड़ी
कल तुम्हें ही करेगी धराशयी
जीवन के आख़री चरण में
होगी ज़रूरत तुम्हें अपनों की
पर स्वार्थवादी सोच वाले
नन्हें पौधे वृक्ष बनकर
सोख लेंगे जमीं की नरमी और नीर
इनके प्रति तुम्हारी फ़िक्र के बदले
मिलेंगे तुमको तानों के तीर।
स्वतंत्रता के नाम पर
छोड़ना चाहेंगे तुम्हारा साया
या करेंगे प्रयास
तुम खुद हो जाओ दूर
इनके ऊपर तुम्हारी दया और छाया
लगेगी इनको बंधन
कसेंगे फिर ये ऐसा ताना-बाना
के छोड़ दो तुम अपना तख़्त।
इसीलिए,
हे बूढ़े दरख्त,
वक़्त रहते हो जाओ सख्त।