फूल और औरत
फूल और औरत
फूलो जैसी है औरत की जिन्दगी,
वह फूल भी तभी तक खिला है,
जब तक वो डाली से जुडा है,
और औरत भी तभी तक खिली
रहती है जब तक पिता के आँगन मे है,
कि जैसे ही पिता का घर छूटा,
और जैसे ही डाली से फूल टूटता है,
दोनो पराये हो जाते हैं जनाब,
फूल डाली से औरत माँ के आँचल से,
उस के बाद भी कहाँ जीवन आसान
होता ना जाने कौन माला मे पिरौता है,
या रास्ते पर सिर्फ तोड के छोड जाता है,
वैसे ही औरत का जीवन होता है दोस्तो,
कि कौन सिर्फ इसे भोग विलास की वस्तु
समझे या कोई इसे घर की लक्ष्मी दोस्तो,
कि कौन अन्नपूर्णा देवी खुशहाली और
समृद्धि समझे या मात्र पैर की जुती दोस्तो,
कुछ भी कहो दोनो का एक जैसा ही जीवन,
फूल और औरत अपना जीवन हमेशा
ही दूसरो के लिए जीते आये हैं दोस्तो
दुख तो तब होता जब सम्मान करने की
जगह इनका अपमान होता हैं दोस्तो
दुख होता है जब फूलों को पैरो तले रौदा जाता है
अपने मतलब के लिए तोडा जाता
और देवी जैसी औरत का अपमान किया किया जाता
उसे मारा पीटा जाता या शारीरिक
उत्पीडना का शिकार बनाया जाता है,
जिनका जीवन सदा दूसरों के काम आता है,
उनकी ये हालत कभी कभी मन विचलित कर जाती है
मत करो दोस्तो ऐसा कभी भी
जरा सोच के देखना एक माँ, बेटी, बहन
और पत्नी के बिना कैसा जीवन होगा,
अगर जीवन मे ऐ सब औरत के रूप तुम्हे
मिले तो इसका सम्मान कीजिए दोस्तो।