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Brijlala Rohan

Inspirational

3  

Brijlala Rohan

Inspirational

मेरी माँ जब तुम्हें ,मैं

मेरी माँ जब तुम्हें ,मैं

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जब भी माँ तुझे चिंतित देखता हूँ , जब तुम्हें उदास देखता हूँ ,जब तुमको दु: खी देखता हूँ !

मन स्तब्ध हो जाता है ! टूट जाता हूँ ,माँ तुझे टूटे हुए देखकर ! 

मेरी माँ! मैंने तुझसे ही तो सीखा है , आँसु पीते हुए भी मुस्कराना ! 

गम अंदर ही अंदर पीते हुए भी खुशी के गीत गुनगुनाना!

तो फिर माँ इन अमृत तुल्य मोतियों को यूं ही समंदर की वडवागिन में जला रही हो ? 

कैसे टूट सकती है ,मेरी माँ ! उसने तो हमें बचपन से ही जुड़ना सिखाया है ।

मेरी माँ तो शेरनी है तभी तो अपने बेटे को शेर कहके बुलाती है।

तो फिर शेर की तरह दहाड़ने वाले बेटे की माँ कभी कायर हो ही नहीं सकती !

तुम शेरनी की तरह दहाड़ मारों माँ उन दु:ख के आततायी गीदड़ों पर टूट पड़ो! 

जीवन के हर परीक्षा से तुने ही तो हमें पार करना सिखाया !  तूने ही तो दहकती आग में भी अपनी ऊँगली पकड़ाकर हमें चलना सिखाया ,हमें दौड़ना सिखाया ,

और तुने ही तो झुंड के झुंड आये लोमडियों से हमें भिड़ना सिखाया और दहाड़ कर खदेरना भी तो तूने ही सिखाया !   चिलचिलाती धूप हो या हो कंपकंपाती ठंड। 

तूने ही तो हमें अपने करम में रमना सिखाया ,उद्योग निरत रहना सिखाया !

तो फिर माँ तु आज क्यों उदास हो ? 

क्यों तुम मन मारी हुई हो ? आखिर क्यों मेरी शेरनी माँ? क्यों ? तुम खुद को पहचानो माँ और संभालो अपने आप को !


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