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Rishab k..

Inspirational

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Rishab k..

Inspirational

क्या वो नारी रही?

क्या वो नारी रही?

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वो कल भी सब सहती रही वो आज भी रोती रही है वो नारी तो क्या हुआ दर्द तो उसमें भी है एक रूह तो उसकी भी है फ़िर भी वो लड़ती रही हर ग़म से वो मिलती रही सीता को भी देनी पड़ी अग्निपरीक्षा चरित्र की प्रेम की चाहत में तो राधा भी बेचारी रही क्या इसलिए कि वो नारी रही ?


शायद कोई बलशाली बना द्रौपदी के वस्त्रों को छीनकर वो न्याय से वंचित रही अन्याय से घिरती रही ख़्वाब तो उसके भी थे जो ख़ुद में वो बुनती रही इंसान की हैवानियत ने एक पल में ही सब कुचल दिये ये बात है उस निर्भया की जो मर के भी मरती रही सिसकियां वो भरती रही क्या इसलिए कि वो नारी रही ?


अश्लीलता को त्याग कर अब तो उसका सम्मान कर अपनी इच्छाएं समेटकर तेरी कमियाँ पूरी करती रही वो हर हद से गुजरती रही क्या इतना अभी काफी नहीं या तू उससे वाकिफ़ नहीं ज़रूरत को हर रिश्ते की वो नज़ाकत से समझती रही ख़्वाहिशें अपनी कुर्बान कर होंठो से मुसकुराती रही क्या इसलिए कि वो नारी रही ?


वो सभ्यता का भंडार है संस्कृति का आधार है वो मोम सी पिघलती रही उस अग्नि में जलती रही उसके ही तो अस्तित्व से इस जहान में ये जान है नारी की अद्भुत शक्तियों से कुछ आज भी अनजान हैं दैवीय सृष्टि के सौन्दर्य का वो सृजन भी करती रही अपना विनाश भी सहती रही क्या इसलिए कि वो नारी रही ?



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