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Brajendranath Mishra

Inspirational

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Brajendranath Mishra

Inspirational

झड़े पत्ते, ठूँठ से खड़े पेड़

झड़े पत्ते, ठूँठ से खड़े पेड़

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झड़े पत्ते, ठूँठ से खड़े पेड़ !

झड़े पत्ते, ठूँठ से खड़े पेड़,

नीचे नर्मदा की पतली होती धार।

चैत्र मास की नवमी में भी,

ये विशाल पहाड़ क्यों हैं उजाड़ ?


क्या सूख गया धरती का श्रोत ?

क्या जड़ें खोज रहीं जलधार ?

क्या पर्बत खड़े नंग - धडंग सोच रहे ?

कहाँ ठहरा बूँदों का संसार ?


कालिदास की काब्य - कल्पना,

कैसे पाएगी सहज विस्तार ?

कहाँ से ढूढ़ लायेंगें बादल ?

मेघदूत कहाँ सोया लाचार ?


क्यों इतनी है उष्ण धरा ?

इसकी नमी कहाँ रह गई ?

किसके आंसुओं का इंतजार कर रही ?

उसी के बहने की बस कमी रह गई।


मानव ने काटकर हरे पेड़,

हरियाली का हरण कर लिया।

वक्ष धरती का है अनावृत

माँ के अवदानों का यही सिला दिया।


कब चेतेंगे धरती - पुत्र ?

कहाँ यह सिलसिला थमेगा ?

कब होगी मही हरी - भरी ?

कब फिर मेघ झमाझम बरसेगा ?


ता: 16-06-2016. नर्मदा तट पर स्थित

ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन के बाद आसपास के 

वातावरण पर यह कविता लिखी गई है।


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