STORYMIRROR

Brajendranath Mishra

Others

4  

Brajendranath Mishra

Others

वंचितों की दुनिया

वंचितों की दुनिया

1 min
310



वंचितों की दुनिया में जिंदगी सहमी हुई है।

नीम अंधेरों में जैसे रोशनी ठहरी हुई है।


गले में तूफ़ान भर लो, चीखें सुनाने के लिए,

शोर में दब जाती है,  गूंज भी गूंगी  हुई है।


मगरमच्छ हैं पड़े हुए उस नदी  में हर तरफ,

जो  ख्वाहिशों के समन्दर तक पसरी हुई है।


आह उठती है यहाँ, पत्थरों से बतियाती है।

लहरों से टकराते हुए, नाव जर्जर सी हुई है।


रेतीली आंधियों में इक  दिया टिमटिमाता है,

थरथराती हुई लौ, अब जाकर स्थिर हुई है।


खुशबुएँ सिमट कर,  बंद थी,  कोने में कहीं,

उड़ेंगी अब, उनके  पंख में हिम्मत भरी है।


उम्मीदों के फ़लक पर  आ गयी है जिंदगी,

सपनों के जहाँ की नींद भी सुनहरी हुई है।


वंचितों की दुनिया भी अब है उजालों से भरी,

नीम अंधेरों  में भी अब  रोशनी पसरी हुई है।


Rate this content
Log in