STORYMIRROR

Brajendranath Mishra

Romance

4  

Brajendranath Mishra

Romance

फागुनी नवगीत

फागुनी नवगीत

1 min
382

अलसाया तन, बौराया मन,

कल्पना का नहीं ओर छोर.

कोयल भी कूक रही मीठी - सी धुन,

बगिया में गदराया अमवां का बौर।


लाल रंग फ़ैल गया यहां - वहाँ,

लहक गया, दहक गया पलाश वन।

आँखें टिकी हुई चौखट पर,

पिऊ संग कब होगा मिलन।


फाग का राग बन आ गई होली भी,

अब तो घर आ जा मेरे सजन।

बयार भी चुभ रही काँटा बन,

मन हुआ बावरा, बिसर गया तन।


आँगन में सास मेरी खाट डाले हुए,

देहरी पर है ससुर जी का पहरा।

मन तो लांघ जाता सारी हदें, 

मर्यादाएं न तोडूँ, पांव ठिठक ठहरा।


आँखे थी टकटकी लगाए हुए,

पड़ती रही ढोलक पर थाप पर थाप।

चुनरी भींगो गयी कोई सहेली मेरी,

पर न मिट पाया मन का संताप।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance