वैदेही, अब तुम न आना इस देश
वैदेही, अब तुम न आना इस देश


वैदेही, अब तुम न आना इस देश
यह तो भया विदेश
वैदेही, अब तुम न आना इस देश
नैतिकता का नाम नहीं है
त्याग का सम्मान नहीं है
लिप्सा की अभिलाषा में
लगा यह जीवन अशेष
वैदेही, अब तुम न आना इस देश
बटमार सा मन हुआ है
सर्वस्व लेने पर अड़ा है
बचा कहाँ है कोई आंचल
देने को कुछ नहीं है शेष
वैदेही, अब तुम न आना इस देश
अब कोई आराध्य नहीं है
सेवा का अब भाव नहीं है
प्रेम से सूना मन का कोना
कर्तव्यों से नहीं है कोई नेह
वैदेही, अब तुम न आना इस देश
राम से अब रहा न नाता
ताप त्याग का सहा न जाता
सिया जगत मूढ़ विख्याता
शूर्पनखा ने ओढ़ा नारी वेश
वैदेही, अब तुम न आना इस देश
वैदेही, अब तुम न आना इस देश
यह तो भया विदेश
वैदेही, अब तुम न आना इस देश।