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स्वप्निल संसार

स्वप्निल संसार

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फूस की झोपड़ी में, उफनता यौवन

तन को क रहे नहीं...आधे-अधूरे वसन

पेट में भूख है और, खाली है गागर

पानी को तरस रहा, भरा हुआ सागर


रतनारी नयनों में., स्वप्न बसे हजार

अभावों से मरता नहीं, यह स्वप्निल संसार

आएगा राजकुमार, सफेद घोडों पर सवार

फूलों से सजी पालकी....लेकर आऐंगे कहार


बनकर रानी, अपने भाग्य पर इठलाऊँ

पांवों के शूल की., चुभन भूल जाऊँ

फूलों के हार से...करती दपदप क्षृंगार

हर नवयौवना का, यही शाश्वत संसार


शीशे के महल का पुख्ता नहीं आधार

षोडशी के नयनों में...यही उसका संसार

बीती कितनी सदियां, बीते कितने युग

इस स्वप्निल संसार का...न आदि न अंत।


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