अनमोल काया
अनमोल काया
मानव तन हे मिला अनमोल,
तू व्यर्थ ना खोना इसका मोल।
पल पल तेरा कर्म ही,
तेरे साथ है चलता ।
सुकर्मो की गठरी लेकर,
प्रभु के धाम ही जाना ।
प्रभु हो हर्षित,मन हो गदगद
ऐसा रूप बनाना ।
तेरा मेरा मोहपाश से ,
मुक्त रूप हो जाना ।
यदि ना कर सके भला ,
तो फिर बुरे से तौबा करना ।
तन में मिले हैं नव दरवाजे ,
दसवां ठौर लगाना ।
सत्य , प्रेम, प्यार , दया
ये सुंदर भाव जगाना ।
सबका भला हो ऐसा करना,
तो खुद ही होगा कल्याणा ।