एक ही आँगन , एक ही ओसारे
एक ही आँगन , एक ही ओसारे
हे, दीनानाथ बस एक विनती है तुझसे,
अपने हर भक्त को तू सद् ज्ञान से भर दे !
बुद्धि ज्ञान का एक समान वितरण करना,
इससे आराजकता कम हो जाएगी देखना!
भूल जाएगा इंसान जब मिथ्या अहम,
तभी उनमें आपस में ना होगा कोई वहम !
स्वतः ही तिरोहित हो जाएगा उसका गौरव,
जब आपस में मिलकर रहने लगेगा मानव !
एक दिन खत्म हो जायेंगी ये सरहदी दीवारें,
मजहब, जाति-पाति ऊंच - नीच की तकरारें !
खत्म होगा वैमनस्य और बढ़ेगा सद्भाव तो ,
साथ बैठेंगे सब एक ही आंगन और ओसारे!