कच्छप
कच्छप
1 min
219
कच्छप मैं नील समंदर में
विशाल लहरियों से क्या भय
है मेरे पृष्ठ पर सुरक्षा छत्र
मैं जल थल का प्राणी द्वय
कोमल मेरे अंग अंग हैं पर
चट्टानों सा फौलादी मन है
पृथ्वी की तरह धीरज धारी
लंबा ही मेरा जीवन है
हरि ने भी था मेरा रूप लिया
मंथन समुद्र का सबने किया
इस नील जलधि में रत्न अनेक
मैं ज्ञान चक्षु से रहा हूँ देख!