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Shipra Verma

Abstract

4.4  

Shipra Verma

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तूफान

तूफान

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तूफान उठा है बाहर एक ज़ोर से

मन की बिजलियाँ रह रह चमके

ज्ञान पिपासा लिए अधर पर बोलो मैं

कितना, कबतक रहूँ खुद को समेटें? 


खुल गए मेरे केश पवन संग लहराएँ

आँधियाँ भूली बिसरी बातें ले आयी

तूफान हृदय में अब भी ज्वलंत उठें हैं

बरसों बीतें पीड़ा ही, कम न हो पायी.


इन पन्नों पे ये कथा लिखूँ मैं शान से

युग -युग चौकेंगा मेरे शब्दों के तूफान से

काले बादल सब घबरा कर देंगे रास्ता

कौंध जायेंगी बिजलियाँ जब अरमान से ! 


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