रैन में बेचैन
रैन में बेचैन
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रैन अंधियारी बादल नभ छाए
दामिनि दमकत् जिया डराये
नहीं आये पिया घर आंगना
कौ विधि मन को रही समझाए
पग पग पत्थर पर धर धर
वस्त्र संभाले चुनरी सर पर
केवल बिजलियाँ रोशन पथ में
निकली ढूँढने मोहन गिरधर
बाहर चाहे घोर अंधियारी
मन में प्रीत की उतनी उजियारी
हरि हो अंतर्मन में हृदय में जब
घर न फिरूँगी बिना मुरारी !