इक छोटी सी कश्ती
इक छोटी सी कश्ती
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इक छोटी सी कश्ती में
तुम और मैं, बस दोनों ही
भोर के सूरज की रश्मियाँ
तैरती हुई स्वर लहरियाँ
चलो चलें मझधार चलें
आगे- पीछे कुछ न देखें
सुने हम केवल ब्रह्म नाद
मिटायें सारे ही हर्ष विषाद
प्राणों में भरें केवल आनंद
जीवन है क्षणिक, साँसें चंद
अनुभव, कर्म, ज्ञान व प्रेम
यही बटोरते जो हैं अक्लमंद!!