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Shipra Verma

Others

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Shipra Verma

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वको: ध्यानम्

वको: ध्यानम्

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जितनी दीर्घ है चोंच मेरी

उतनी दीर्घ प्रतीक्षा करता

घंटों एकाग्रचित्त खड़ा मैं

एक कीट पे दृष्टि रखता! 


लंबी सफ़ेद ग्रीवा को अपनी मैं

लचका कर मोड़ ले सकूँ हर ओर

छोटी मीन मेरी प्रिय भोजन

जो फंसी,-चले न फिर कोई जोर! 


मेरी सुन्दर सशक्त पैरों पर, 

टिका है धर्म का कलयुगी संतुलन

पता नहीं क्यों मानवता त्याग कर

मनुष्य तेज़ी से कर रहा धर्मांतरण? 



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