मैं वन मन की रानी
मैं वन मन की रानी
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मैं वन मन की रानी प्रभाश्री
अखिल वन मेरा विस्तृत संसार
पवन, सरिता, वृक्ष, सारे पर्बत
मेरे सेवक, अनुयायी, आधार!
ये मृग शावक, ये अश्व, सियार
अजा से सिंह तक करे प्रणाम
मैं उनकी वन रानी माता हूँ
मुझे समर्पित करते वो हर काम!
स्वच्छ नीर का अनुपम रत्न औ'
स्वच्छ समीर का अक्षुण्ण पहरा
अप्रतिम लावण्य मेरे इस वन का
प्रेम आह्लाद हर उर में है गहरा!
यहाँ का राजा वही बनेगा जिसमें
हिंसा का कोई भी विकार नहीं
दुर्लभ, किंतु असंभव तो नहीं लगता
कोई नर हो जिसमें अहंकार नहीं!!