STORYMIRROR

Amit Mishra

Inspirational

3  

Amit Mishra

Inspirational

क्यों जीवन व्यर्थ गंवाता है

क्यों जीवन व्यर्थ गंवाता है

1 min
294

निश्छल और निष्पाप रूप में

जीव धरा पर आता है

आसक्ति और मोह के वश में

जीवन व्यर्थ गंवाता है


ज्ञानी रावण भी क्रोधित हो

पर स्त्री हर लाता है

तीनों लोक विजय पाकर भी

रण में मृत हो जाता है

 

नश्वर है ये देह हमारी

कंस जान ना पाता है

युक्ति सारी अपना कर भी

मृत्यु अंत में पाता है


चक्र बदलने को जीवन का

क्या क्या तू अपनाता है

खेल ही सारा प्रभु रचे है

प्राणी जान ना पाता है


काम, क्रोध और लोभी मन

ये पाप सभी करवाता है

धन, दौलत हो महल अटारी

धरा यहीं रह जाता है


प्रत्युत्तर में फल कर्मों का

इसी धरा पर पाता है

जन्म सफल करने का अवसर

यूँ ही व्यर्थ गंवाता है


मानव जीवन ही पूँजी है

क्यों बुरे कर्म अपनाता है

सत्कर्मों से सुन हे मानव

नाम अमर हो जाता है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational