कठिन डगर पे चल के ही
कठिन डगर पे चल के ही
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जो वक़्त की बिसात पे
तू हौसले बिछाएगा
फ़लक नहीं है दूर फिर
सितारे तोड़ लाएगा
आँधियों के वेग में
अडिग खड़ा रहा अगर
रुख़ हवाओं का तू फिर
ख़ुद ही मोड़ पाएगा
कदम को कर कठोर तू
ख़ुद को जो जलाएगा
सदमें हर सफ़र के फिर
हँस के झेल जाएगा
निराश हो के रुक नहीं
हताश हो के थक नहीं
आशा की पतंग को
स्वयं ही तू उड़ाएगा
पर्वतों को तोड़ के
जो रास्ते बनाएगा
एक दिन ज़माना भी
पीछे पीछे आएगा
निगाह तेरी लक्ष्य पे
तू मुश्किलों से डर नहीं
कठिन डगर पे चल के ही
तू मंज़िलों को पाएगा