साहित्य का दायित्व
साहित्य का दायित्व
साहित्य का दायित्व यह हो
सभ्यता, संस्कृति मुखर हो
देश हित जिसमें प्रचुर हो
नारी-नर शालीन हों और
बालकों को बोली मधुर हो
साहित्य का दायित्व यह हो
भाषा की आशा संजोए
सबको एक सूत में पिरोए
अज्ञानता का तम मिटाकर
नव उषा की किरणें लाए।
साहित्य का दायित्व यह हो
हर दिल को इंसा बना दे।
जो सो गये, उनको जगा दे।
रिश्ते-नाते, प्रीती है क्या।
प्रेम रग-रग में बहा दे।
साहित्य का दायित्व यह हो
पीड़ जन मन की हरे
उदर क्षुब्धों के भरे
बीज बोए प्रेम के और
घृणा, द्वेष कर दे परे।
साहित्य का दायित्व यह हो
निर्मल मृदुल हर शब्द हो,
वाणी में घुला मधुरस हो,
अपनी लेखनी ऐसे चलाये,
सोचने पर हम विवश हो।
साहित्य का दायित्व यह हो।