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Ahmak Ladki

Romance

4  

Ahmak Ladki

Romance

ओढ़ रही हूँ खुद को

ओढ़ रही हूँ खुद को

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235


उतार फेंका था

अपने आप को ख़ुद से दूर

जब तक थीं गर्मियाँ

जब तक थे तुम

ज़रूरत ही नहीं थी

कुछ अन्य लादने की।


लेकिन

लेकिन, अब मौसम सर्द है

गर्माहट चाहिए मुझे अपनेपन की

जो तुमसे मिलने की उम्मीद नहीं

और किसी बाहरी कंबल का अवलंब

मुझे कभी गवारा था ही नहीं।


अब...अब, जब दिसम्बर ने

दस्तक दे दी है

मैं ओढ़ रही हूँ ख़ुद को

कुछ तरह कि हमारे

रिश्ते की वो गर्माहट

मेरे भीतर ही महफ़ूज़ रहे।


जब बर्फीली हवाओं से

ठिठुरेगा मेरा तन

तो जलाऊँगी

अलाव हमारी बातों का

तुम्हारी यादों की चिंगारियाँ

गुनगुना देंगीं मेरे जमे हुए एहसास।


और सर्द-सियाह रातों में

मेरा हमदम होगा

वो एक चाय का प्याला

जो अब भी बाकी है

तुम्हारे और मेरे बीच।


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