संवाद और संवेदना के माध्यम से सबको जोड़ने की कोशिश में एक लेखक
बातें. हाँ शायद मैं इन्ही बातों में आ गई। बातें. हाँ शायद मैं इन्ही बातों में आ गई।
फूंकते हो तुम, सुलग जाती हूँ मैं सुनो, इसे बुझा दो बुझना चाहती हूं मैं। फूंकते हो तुम, सुलग जाती हूँ मैं सुनो, इसे बुझा दो बुझना चाहती हूं मैं...
सज़ा ना कोई माफ़ हुई सज़ा ना कोई माफ़ हुई
जिस पल तुम होते हो मेरे ख़यालों में मैं राधा बन जाती हूँ रास रचाती हूँ तुम संग जिस पल तुम होते हो मेरे ख़यालों में मैं राधा बन जाती हूँ रास रचाती हूँ तुम ...
वो एक चाय का प्याला जो अब भी बाकी है तुम्हारे और मेरे बीच। वो एक चाय का प्याला जो अब भी बाकी है तुम्हारे और मेरे बीच।
चलो इस साल कुछ यूं करें मैं बनूँ दिसंबर, तू जनवरी बनें। चलो इस साल कुछ यूं करें मैं बनूँ दिसंबर, तू जनवरी बनें।
लेकिन सांझ ढले जब तुम चाहो एक अपना सा शांत कोना दिन भर की थकान उतारना किसी आलिंगन मे लेकिन सांझ ढले जब तुम चाहो एक अपना सा शांत कोना दिन भर की थकान उतारना क...
अपनी लेखनी ऐसे चलाये, सोचने पर हम विवश हो। अपनी लेखनी ऐसे चलाये, सोचने पर हम विवश हो।
तुम पहचान ही लेते हो उसके पीछे छुपा चेहरा इसे कायम रखना ऐसे ही ढहने मत देना.. तुम पहचान ही लेते हो उसके पीछे छुपा चेहरा इसे कायम रखना ऐसे ही ढहने मत ...
तुम्हारे होने और ना होने के बीच जो भी कुछ था तुम्हारे होने और ना होने के बीच जो भी कुछ था