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Ahmak Ladki

Abstract

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Ahmak Ladki

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कान्हा

कान्हा

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कान्हा, तुम बस कान्हा रहो।

और मैं…

मैं कभी राधा, कभी रुक्मणी

तो कभी मीरा बन

तुमको ठीक वैसे ही धारण करुँगी

जैसे तुम अधरों पर मुरली

और सिर पर मोर पंख धारण करते हो


जिस पल तुम होते हो मेरे ख़यालों में

मैं राधा बन जाती हूँ

रास रचाती हूँ तुम संग

तुम्हारी मुरली की तान पर

थिरकती हूँ मैं बेसुध


जिस पल मैं होती हूँ तुम्हारे ख़यालों में

रुक्मणी बन जाती हूँ मैं

स्वामिनी कर देते हो मुझे तुम

न सिर्फ तुम्हारी

बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड की


कान्हा, लेकिन

जिस एक पल हम दोनों एक साथ

एक-दूजे के ख़याल में होते हैं

तब...

तब मैं तुम से भी ऊपर होती हूँ

तब मैं रचती हूँ तुमसे, बसती हूँ तुम में

लीन हो जाती हूँ तुम ही में

तुम्हारे ख़याल मुझसे मिल कर

मुझे मीरा कर देते हैं

और मुझे मीरा होना पसंद है!


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