एक पाती सूरज को
एक पाती सूरज को




ढलते, अस्त होते
रक्ताभ सूरज,
तुम दिन भर खूब चमकना
सूरजमुखी खिलाना
ओस की बूंदों पर दमकना
बदलियों संग अठखेली करना
धानी चुनर को सुनहली कर देना
ठिठुरते बूढ़े तन को गर्माहट देना
हर अंधियारे कोने को रोशन करना
लेकिन सांझ ढले जब तुम चाहो
एक अपना सा शांत कोना
दिन भर की थकान उतारना
किसी आलिंगन में
कतरा-कतरा पिघलना
सकून के पलों में ढलना
तो तुम बेझिझक मेरे पास आना
कुछ मत कहना,
मैं भी चुप ही रहूंगी
बस हौले से सर रख देना
मेरी गोद पर
उतार जाना दिन भर की सारी थकान
मेरे कांधों पर
छोड़ जाना चिंता की सारी लकीरें
मेरे माथे पर
मूंद लेना अपनी आँखें
देख लेना कुछ सपने
जी लेना अपने हिस्से के कुछ पल
सिर्फ अपने लिए।
सुबह तो तुम्हें फिर चमकना होगा ना
दुनिया के लिए....
तुम्हारी सांझ