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Diwakar Pokhriyal

Inspirational

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Diwakar Pokhriyal

Inspirational

पर्व

पर्व

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आज भी नहीं समझ पाया,

इंसान यह रीत,

खुद में ही है नफ़रत,

खुद में ही है प्रीत,

 

कौन राम है, कौन रावण,

कौन मंदोदरी, कौन सीता,

खुद में मरता है तू,

खुद में ही जीता,

 

हनुमान का इंतज़ार है,

या लक्ष्मण की आशा,

खुद से ना उठेगा जो,

पाएगा बस निराशा,

 

क्या लंका, क्या अयोध्या,

सब एक ही जैसा है,

निर्भर इसपर है,

तेरे मन का राजा कैसा है?

 

आग लगाने से हर साल,

सिर्फ़ धुआँ ही तो उठेगा,

तू रह जाएगा वो ही,

मन का मैल ना हटेगा,

 

हर पर्व के पीछे,

देख एक सीख होती है,

जो समझ गया इसको,

उसके जीवन में ज्योति है


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