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Diwakar Pokhriyal

Drama

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Diwakar Pokhriyal

Drama

विचारो का कोहराम

विचारो का कोहराम

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लोहे से ज़्यादा दर्दनाक,

होता है पिंज़रा अपनों का,

एक हँसी दबा जाती है जहाँ,

मंज़र उन सुनहरे सपनों का,


अपनों का अंध-विश्वास कभी,

काटे हिम्मती इरादों को,

हैरान कर देती है यहाँ,

सहमी आवाज़ फौलादों को,


जो हो चुका है सौ-सौ बार,

फिर से होगा ये जाने ना,

फिर भी जब ज्योत जलानी हो,

दिल की सच्चाई माने ना,


जो तोड़ ना पाए पाश यहाँ,

बस वो विद्वान ही होता है,

जो दिल से केवल सच बोले

उसका सम्मान ना होता है,


ज़िम्मेदारी की बातें बस,

पैसे और शान में दिखती है,

सपनों को जो पाने की है,

वो आस यहाँ ना बिकती है,


मंज़िल को किसी की समझने का,

सामर्थ्य कहाँ से हम लाए,

आँखों से सब देखे हैं हम,

मन से पर साथ में ना आए,


गर सच इतना ही आसां है,

फिर क्यूँ रहते सब रोष में,

जब सब को सब कुछ मालूम है,

फिर क्यूँ जीते हैं दोष में।।


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