प्रकृति- संरक्षण
प्रकृति- संरक्षण
त्याग स्वार्थपूर्ण काम, हर कार्य हो शुभ आचरण।
उन कार्यों का करें वरण, सुधारें जो पर्यावरण ।।
हमें प्रकृति से वर मिले, पले बढ़े और हम खिले।
सभी से हम हिले-मिले, और साथ- साथ बढ़ चले।
सारे भेद छोड़-छाड़, स्वार्थ की तो तज के आड़।
सतत प्रकृति हो शुभप्रदा, करेंगे मिल के सब जुगाड़।
रक्षण प्रकृति का जिनसे हो, अपनाएंगे वही चरण।।
त्यागें स्वार्थपूर्ण काम
निज हितों की सुधि बिसार, सर्वहित का कर विचार।
अल्प लक्ष्य देवें टार, और प्रकृति से करके प्यार।
ठान लें ये कठिन रार, मानेंगे कभी न हार।
कोष प्रकृति का अपार, लाभकारी हर प्रकार।
सभी की तब मिटे जलन, मिले प्रकृति की जब शरण।।
त्यागें स्वार्थपूर्ण काम
फैसले लें कुछ कठिन, मिल सब करें जतन ।
छोड़ सब अहम् के भाव, प्रभु को हम करें नमन।
वसुंधरा सजी रहे, विचारता रहे ये मन ।
पोषण प्रकृति का हो सतत, लगाएं सब धन और तन।
स्वार्थ तो परास्त हो, परमार्थ जीत जाए रण।।
त्यागें स्वार्थपूर्ण काम
