सचेत रहें
सचेत रहें
इस जग में पहचानिए ,छल-प्रपंच और झूठ,
सचेत जो रहे नहीं तो लोग लेंगे तुमको लूट।
सरलता तो ठीक है सहजता का भी भाव हो,
सतर्कता जो बनी रहे तो जग में पार नाव हो।
तय सीमा तो कर दीजिए न दें बेहिसाब छूट,
सचेत जो रहे नहीं तो लोग लेंगे तुमको लूट।
भाव तो उदार कीजिए कृपणता तो सही नहीं,
मितव्ययी स्वभाव हो फिजूल खर्च को कहें नहीं।
हित अभावग्रस्त का सधे चाहे कुछ खर्च जाएं छूट,
सचेत जो रहे नहीं तो लोग लेंगे तुमको लूट।
कुछ गुप्त भाव भी रखें रहें सार्थक कर लें बदलाव,
काल परिस्थिति उत्तरदाई मत लें अधिक तनाव।
सदा मधुर अमृत न मिलता लेने पड़ते हैं विष घूंट,
सचेत जो रहे नहीं लोग लेंगे तुमको लूट।