' मेरी कलम '
' मेरी कलम '
हनक है मेरी कलम में जो बेबाक सच लिखती है
सनक है उस कलम में जो आईने को पलट देती है,
वो कहते हैं जो उनकी नज़र का सच है
मेरी कलम वो क्यों नहीं लिखती है
क्या करूँ बेहद ढीठ है कलम मेरी
सच को ही सच मान बैठती है,
कलम किसी को कभी कहाँ संतुष्ट कर पायी है
सच लिखा तो विरोधियों ने कागज़ पर फेंकी रौशनाई है,
झूठ लिख कर ये कलम खुद की नज़रों में गिर जायेगी
वो बात अलग है की ये झूठी कलम ही
ज्यादातर को समझ आयेगी ,
है किसी में इतना दम जो मेरी कलम से झूठ लिखवा सके
सीधी खड़ी है अकड़ के कोई नहीं इसको झुका सके।
