ये जिंदगी...
ये जिंदगी...
ऐ ज़िंदगी... मुझे तुझसे मोहब्बत है.......
मौत भी किसी महबूबा से कम नहीं.....
यह तुझसे गुज़रती है जो आबोहवा इश्क की.....
इस तन्हा दिल को है ...इक तेरी फिक्र सी......
कशमकश सफ़र.. की कुछ ऐसी रही....
दरख़्त इम्तिहानों की पहेली अबूझी सी रही....
जो अल्फ़ाज़ निकले भी ना थे ज़ुबां से....
मुकम्मल हो रही चीख ..वो बन ख़ुमार से......
आ बैठ ज़रा.. पल-पल का मेरा हिसाब कर.....
अपने सिलसिलों से मुझे.. बेनूर सा लाजवाब कर....
गर ख़फा है तू ..तो कोई मुझसे वास्ता ना रख......
रूबरू होने का एक पल ..उस नजर का महताब रख..
मुझ फकीर को वह नशा है ..उस ख़ुदा की बंदगी का..
मुझसे मिलने को तू ..वह सूफियाना कलाम रख....
उड़ जाऊँगा बन परिंदा सा जब मैं....
मौत-ए-महबूबा ...लेगी मुझे आगोश में....
अदा कर जाऊँगा हर कर्ज़.. रहकर अपने वजूद में..
साँसें जो तूने बख्शी हैं.. ऐ ज़िंदगी तेरे निभाने के सूद में..
