भूले नहीं परंपरा
भूले नहीं परंपरा
जिन परंपरा-मान्यताओं पर हमें अभिमान था
शाश्वत जीवन-मूल्यों से जो देश बना महान था।
आज वही हमारा आर्यावर्त खो रहा पहचान है
सभ्यता-संस्कृति पर आज रहा नहीं ध्यान है।।
धीरे-धीरे परंपराएं-मान्यताएं तोड़ रही दम हैं
आधुनिकता के फेर में होती जा रही ख़त्म हैं।
संस्कार की रोज़ ही उड़ती जा रही धज्जियाँ हैं
सिर्फ दिखावे की खातिर बटोरती सुर्खियाँ हैं।।
जन्मदाता का अपमान करके आती नहीं लाज
माता-पिता को साथ रखने में बेटों को एतराज।
घर में छिपे हैं चीरहरण करने को फैलाए फण
भाई-भाई के मध्य जायदाद के लिए होता रण।।
वर्तमान में हर रीति-रिवाज का बनता मखौल
अनमोल परंपरा-मान्यताओं का नहीं है मोल।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते मात्र किताबी बातें
अपमान से प्रतिदिन ही भीगी रहें उनकी रातें।।
निर्लज्ज बन बेशर्मी की सारी हदें कर ली पार
तभी तो चहुँदिश में बढ़ता जा रहा अनाचार।
परंपरा को भूलने से ही नित हमारा है पतन
स्वीकार करने से इससे हो न कभी भटकन।।
