यशोधरा
यशोधरा
गहन ज्ञान की खोज में, चले गए चुपचाप।
अर्ध रात्रि में छोड़कर, दिया विरह का ताप।।
सात जन्म का साथ यह, छूटा क्यों था हाथ।
सबके दुख का ध्यान था, पर मेरा क्या नाथ।।
परिणीता थी आपकी, माना बस पथ शूल।
पुत्र राहुल का दोष क्या, क्या है उसकी भूल।।
पाना ममत्व था उसे, सोची क्या यह बात।
पूछे मुझसे प्रश्न है, कब आयेंगे तात।।
समिधा-सी जलती रहूँ, नैया है मँझधार।
प्रियवर ऐसा क्यों किया, करना ज़रा विचार।।
भले बुद्धत्व प्राप्त हो, जग पाए उपहार।
पर हमको छोड़ा सदा, जीवन लगता भार।।
क्यों विस्मृत करके हमें, चले अनजान राह।
समझ नहीं पाए मुझे, निकले मुख से आह।।
कंटक पथ की जान तुम, दिया तीक्ष्ण आघात।
पीड़ा कैसी यह मिली, कटे नहीं दिन-रात।।
रंगहीन जीवन हुआ, कह तो जाते आप।
राहुल का तो सोचते, करता सदा विलाप।।
मात पिता का ध्यान क्या! मन भरा है विषाद।
कैसे पितृ का ऋण चुके, आता क्या है याद।।
हृदय छिपाया भेद था, सोच खिन्न हूँ आज।
नहीं भरोसा प्रिय किया, गूँजे यह आवाज़।।
नज़रों से सबकी छिपूँ, किससे हो संवाद।
सुत अब हुआ अनाथ है, खोजे है प्रासाद।।
सोचा पा लोगे भले, खोया क्या है ज्ञान।
सहती जो मैं वेदना, कैसे होगा भान।।
कमी प्यार में ही रही, आते रहें विचार।
ममता ने बाँधा नहीं, पाई सबने हार।।
एकाकी मैं रह गई, कैसा यह व्रजपात।
मन मेरा अब रिक्त है, मन में झंझावात।।
लेगी सहन यशोधरा, समझा क्या आसान।
सहज नहीं यह कर्म है, कठिन यह इम्तिहान।।
