दुश्मन खींचत चीर हमारी, अब रखो लाज गोवर्धन धारी। दुश्मन खींचत चीर हमारी, अब रखो लाज गोवर्धन धारी।
झोली के भीतर हाथ डाल दिया झूठी कोशिश, निकालने की कुछ मुहूर्त, भूख से तड़पते झोली के भीतर हाथ डाल दिया झूठी कोशिश, निकालने की कुछ मुहूर्त, भूख से तड़पते
मैं न लिखूंगा और न गाऊंगा, उसके प्रेम के क़सीदे। आखिरी सांस तक, उसके दुःख को गीत बनाऊंगा, मैं न लिखूंगा और न गाऊंगा, उसके प्रेम के क़सीदे। आखिरी सांस तक, उसके दुः...
रोक ले तू स्वार्थ के इस रकत रंजित बाज़ुओं को। पोंछ दे अब आँख से भी कुंठा के बहते आँसुओं को। रोक ले तू स्वार्थ के इस रकत रंजित बाज़ुओं को। पोंछ दे अब आँख से भी कुंठ...
कोमल वचन बोलीं थी माता कोमल वचन बोलीं थी माता
जिसमें अब शेष नहीं कुछ भी न प्रेम न द्वेष न अपेक्षा न प्रतीक्षा न हर्ष न विलाप। जिसमें अब शेष नहीं कुछ भी न प्रेम न द्वेष न अपेक्षा न प्रतीक्षा न हर्ष न विल...