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Paramita Sarangi

Tragedy

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Paramita Sarangi

Tragedy

"काश"

"काश"

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वो माँग रहा था कुछ

हाथ फैला कर

मुंह फेर लिया तुमने भी

द्वितीय ईश्वर हो कर


उसकी झोली में थी

एक शून्यता और

एक मुट्ठी भूख


झोली के भीतर

हाथ डाल दिया

झूठी कोशिश, निकालने की

कुछ मुहूर्त, भूख से तड़पते

उसके बेटे का विलाप

झांकती हुई मजबूरी,

उसकी स्त्री के

उन्मुक्त स्तन,फटी हुई साड़ी से


काश! मैं होता एक रुपया

होता उसके झोली में

महसूस करता वो शुन्यता

अंधेरे के भारीपन में

किंतु मैं था मेरे अंदर

और थी उसकी झोली में

केवल एक शून्यता और एक मुट्ठी भूख।


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