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Alka Bhatnagar

Tragedy

4.8  

Alka Bhatnagar

Tragedy

बेचैन मन

बेचैन मन

1 min
452


सोच कर ही मन हमारा बेचैन है

सोचो क्या बीती उसके

मां-बाप पर जिसकी वह जान है

सोच कर ही कांप रहा है मन हमारा

क्या बीत रही होगी उस मां बाप पर

जिनके जिगर का वो टुकड़ा था


सोच कर ही दिल दहल सा रहा है हमारा

क्या बीत रही होगी उस मां बाप पर

जिनके जीवन का वो खम्बा था

सोच कर ही आँखों पर अंधकार छा गया


क्या बीत रही होगी उस मां बाप पर

जिनके जीवन की वह रोशनी था

सोच कर ही जान निकलती जा रही है

क्या बीत रही होगी उस मां बाप पर 

जिनकी तो वह जान ही था


जो चला गया वह लौट कर न आएगा

पर हमेशा के लिए अपनों को

रोता बिलखता छोड़ जाएगा 

खुद तो मरकर आजाद हो गया

पर अपनों को जीते जी मार गया


जाना तो इक दिन सबने है

पर बेमौत कहीं ना जाना

कुछ भी करने से पहले 

अपने मां-बाप को याद कर लेना।


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