कैंसर
कैंसर
क्या ?
क्या कहा तुमने ?
अब और जी ना पाओगे
चल पड़े हो लम्बे सफर पर
अब कभी लौट के ना आ पाओगे
मैंने देखा है तुम्हें
रात को छुप के तन्हाई में रोते हुए
दर्द को सहते और खून थूकते हुए
अब तुम हर रोज़
थोड़ा थोड़ा मरते जा रहे हो
साँसे कम हो रही तुम्हारी
जान गले हमारे निकाले जा रहे हो
कई बार टोका
कई बार मना किया मैंने तुम्हे
हाथ भी जोड़े और बच्चो से इशारा भी किया
पर तुम लत में अपनी
हमारा सारा जहां लुटा बैठे
रुपये गहने कपडे तो क्या
अपना गुलशन भी तुम गँवा बैठे
क्या हक़ था तुम्हें
अपनी उम्र यु गवाने का
अपने साथ साथ हमारी भी
खुशियां अपने साथ ले जाने का
मैंने कहा था तुम्हे
छोड़ दो ये नशा करना
बेवजह खुद को खुद ही सजा देना
क्या ग़म था तुम्हे
हम से जो ना बाँट सके
किसी को बोल न पाए
किसी को समझा न सके
काश के तुमने
कभी बात मेरी मानी होती
ना तो ऐसे हाल होते
न तुहारी ऐसी हालत होती
सो जाओगे तुम
पर नींद हमारी ले जाओगे
जब कभी देर रात तलाक तुम
याद हमे आओगे
कोई हक़ न था
तुम्हे मेरे बच्चो को उसके
बाप से जुड़ा करने का
मांग मेरी धोकर बेवा मुझे करने का
आज रोते है बच्चे
तुम्हारे चले जाने के बाद
बड़ी भूल भी जाए
छोटा आज भी चीखता है
तुम्हारे लाश को जलाने के बाद।
