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Op Merotha Hadoti kavi

Tragedy

4  

Op Merotha Hadoti kavi

Tragedy

मजदूर की गरीबी

मजदूर की गरीबी

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इस देश में गंदगी तो

महल वालों ने फैलाई है साहब, 

वरना गरीब तो सड़कों से

थैलियाँ तक उठा लेते हैं ।


निशिदिन मनु स्मृति ये

हमको जला रही है।

ऊपर न उठने देती,

नीचे गिरा रही है।


अमीरी ने खुद को

बनाया है अफसर

हमको पुराने उतरन

पहनो बता रही है।


गरीब दौलत कभी न जोड़ें,

गर हो तो छीन लें वह।

फिर नीच कह हमारा,

दिल भी दुखा रहे।


तुम कहते हम में भेद नहीं 

तुम कहते हम सब भाई हैं

फिर क्यों ऊँचे तुम , मैं नीचा 

क्यों जाति-वर्ण की खाई है।


तुम कहते हम सब हिंदू हैं 

हिंदू होने पर गर्व करो

हिंदुत्व राज्य की नगरी में 

किंतु मेरा घर - द्वार कहाँ है।


तुम चाहो राम राज्य आए 

तुम श्रेष्ठ , शूद्र मैं बना रहूँ

तुमको सारे अधिकार रहें 

मैं वर्जनाओं से लदा रहूँ।


सदियों से शंबूकों की  

गर्दन कटने की परंपरा

इस देश-धरा से उठा जाए 

इस आशय का स्वीकार कहाँ है।


तुम कहते हो आजादी आई 

हमको न अभी तक पता चला।

आजाद हुआ बस लाल किला

ग़रीबी तो आज भी गुलाम रही।


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