मजदूर की गरीबी
मजदूर की गरीबी
इस देश में गंदगी तो
महल वालों ने फैलाई है साहब,
वरना गरीब तो सड़कों से
थैलियाँ तक उठा लेते हैं ।
निशिदिन मनु स्मृति ये
हमको जला रही है।
ऊपर न उठने देती,
नीचे गिरा रही है।
अमीरी ने खुद को
बनाया है अफसर
हमको पुराने उतरन
पहनो बता रही है।
गरीब दौलत कभी न जोड़ें,
गर हो तो छीन लें वह।
फिर नीच कह हमारा,
दिल भी दुखा रहे।
तुम कहते हम में भेद नहीं
तुम कहते हम सब भाई हैं
फिर क्यों ऊँचे तुम , मैं नीचा
क्यों जाति-वर्ण की खाई है।
तुम कहते हम सब हिंदू हैं
हिंदू होने पर गर्व करो
हिंदुत्व राज्य की नगरी में
किंतु मेरा घर - द्वार कहाँ है।
तुम चाहो राम राज्य आए
तुम श्रेष्ठ , शूद्र मैं बना रहूँ
तुमको सारे अधिकार रहें
मैं वर्जनाओं से लदा रहूँ।
सदियों से शंबूकों की
गर्दन कटने की परंपरा
इस देश-धरा से उठा जाए
इस आशय का स्वीकार कहाँ है।
तुम कहते हो आजादी आई
हमको न अभी तक पता चला।
आजाद हुआ बस लाल किला
ग़रीबी तो आज भी गुलाम रही।