परशुराम जी पर कविता
परशुराम जी पर कविता
भगवान परशुराम की गाथाओं को
इतिहास भी बार-बार दौराएगा
याद रहेगा वो सेवा भावी,
दादा परशुराम कहलाएगा।
विष्णु के अवतारी,
कर्मवान योद्धा थे वो।
विद्युदभी फरसे का धारक,
परशुराम कहलाये थे
प्रकृति प्रेमी और ओजस्वी,
मात-पिता आज्ञाकारी
एक सिंह होकर भी वो
लाखों सेना पर भारी थे।
जब दूषित हुई थी मातृ धरा,
चारों ओर बड़ा था पाप
रोया था गुरुकुल आतंकी हत्यारों से
जन्म लिया तब पृथ्वी पर,
विष्णु के अवतारी ने
काट - काटकर दुष्टो के सर,
स्वर्ग बनाया मातृधरा को
वचन दिया था प्रभु ने,
सरवर रक्त बनाने को
शिवजी से परसा लेकर,
अपना वचन निभाया था ।
अमर हो गया वीर तपस्वी,
कर्मों के बलिदानों से।
कण-कण ने भारतभूमि का
तब उनका आभार किया
मुक्त कराया कामधेनु को,
धरती को उसका मान दिया
भगवान परशुराम जी की जय